नौनिहाल का एक दृश्य |
"मुझको उम्र भर नफरत सी रही अश्कों से
मेरे ख्वाबों को तुम अश्कों में भिगोते क्यूँ हो
जो मेरी तरहाँ जिया करते हैं कब मरते हैं
कहते हैं कि इस गीत को गाते समय रफ़ी साहब चार बार गाते गाते ही रो पड़े थे और मौजूदा तकनीक न होने की वजह से इसकी रिकार्डिंग पांच बार शुरू से की गयी थी| शब्दों की गहनता और उनको पिरो कर अमर गीत लिखने वाले लोग कुछ और ही थे, और उन गीतों में जान फूंकते थे उन्हें गाने वाले| सच ही तो है| कैसे भुला पाएंगे हम उन लोगों को जिन्होंने ऐसे योगदान दिए हैं भारतीय हिंदी सिनेमा और हिंदी साहित्य में, जिनके लिए हम सदा उनके ऋणी रहेंगे|
कल और आयेंगे नगमों की खिलती कलियाँ चुनने वाले
साहिर लुधियानवी का ये अंदाज़ आने वाले वक़्त को समेटे था| ये कथन नहीं, इच्छा थी| पर अब इससे बेहतर भला होगा भी क्या? दिल को छूने की भी हद होती है जिसे ऐसे अल्फ़ाज़ पार कर जाते हैं| ज़िन्दगी के हर पहलु को समेटा है हिंदी फिल्मों ने| 'प्रेम' हो या 'देशप्रेम', 'आशाएं' हों या 'सपने'| जहाँ एक और सीमा के जवान के हृदय की मिश्रित भावना को हकीकत फिल्म में कुछ यूँ दिखाया कि:
"होके मजबूर मुझे उसने भुलाया होगा
वहीँ हारे हुओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी 'सरस्वती चन्द्र' की ये पंक्तियाँ अमर हो गयी
स्वर सम्राज्ञी लाता मंगेशकर |
"छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए
ये मुनासिब नहीं आदमी के लिए
प्यार से भी ज़रूरी कई काम हैं
लिखने वाले क्या-क्या नहीं लिखते? कोरा पन्ना सामने होता है जिसपर लिखे जाने वाले शब्द लेखक किसी भी ओर मोड़ सकते हैं, जिन्हें पढ़ने वाले किसी भी दिशा में बह सकते हैं| लिखने के अंदाज़ पर गौर कीजिये ज़रा:
"तेरी ज़ुल्फ़ों से जुदाई तो नहीं मांगी थी
अर्थ है इन बातों में, सार है, प्रेम है, व्यंग्य है| शब्द स्पष्ट होने के साथ-साथ साधारण हैं| रूपक अलंकार है| पर आज कल के गीत कुछ यूँ हैं:
पंक्तियों को सुनकर पहली बार विश्वास नहीं हुआ कि ये गुलज़ार ने लिखी हैं| पर जब पता चला कि इसे लिखने वाला एक नहीं, चार चार थे तो विश्वास हो गया| पंक्तियों के अंतिम शब्दों का मिलान कर देना ही गीत नहीं बन जाता| मनोज कुमार पर फिल्माया गया गीत "मैं ये सोचकर उसके दर से उठा था कि वो रोक लेगी, मना लेगी मुझको" कहीं भी शब्दों की ताल नहीं रखता पर अर्थ गहरे हैं|
फिल्म "घटना" का पोस्टर |
"तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा
ऐसे शिक्षाप्रद गीत संस्कृति के अभिन्न अंग हैं |
"दान का चर्चा घर-घर पहुँचे, लूट की दौलत छुपी रहे
नौशाद और मोहम्मद रफ़ी |
"ये आलम और ये तन्हाई
मोहब्बत की ये रुसवाई
कटी ऐसी कई रातें
फिल्म "वो कौन थी" में साधना |
"दिल चाहता है" में प्रीती जिंटा |
ऐसा नहीं की आज काव्य शास्त्र और आवाज़ के पारखी नहीं| 'दिल चाहता है' का गीत "तन्हाई" इस तर्ज़ पर खरा उतरता है| वैसे ही भाव विहीन करने वाले शब्द और वैसी ही अनुरूप आवाज़| 'वो लम्हे' का गीत "तू जो नहीं है" सबकी पसंद है और ये गीत इसके काबिल भी है| पर ऐसे भावार्थ आदि गीतों की संख्या आज नगण्य प्रतीत होती है| उन महान लेखकों और गायकों को भावी पीढ़ियाँ सदा याद करेंगी| उनकी कमी सदा महसूस होगी जिनका योगदान हिंदी फिल्म जगत और हिंदी साहित्य कभी नहीं भुला पायेगा| हसरत जयपुरी ने सच ही लिखा है:
"तुम मुझे यूँ भुला न पाओगे
जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे
संग संग तुम भी गुनगुनाओगे
(इन गानों को डाउनलोड करने के लिए उन पर क्लिक कीजिये)
suspence
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ReplyDeletesuspence
ReplyDeletesuspence
ReplyDeletesuspence
ReplyDeleteItna suspence?
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