मुझे याद है जब कुछ दिन पहले मैं और मेरा एक मित्र, देवेन्द्र, इस्कोन के मंदिर जाने के लिए बस में बैठे थे (याद रहे, मैं मंदिर के अंदर नहीं जाता)| हम दोनों "स्त्रियांसाठी" सीट पर बैठे थे क्योंकि और कोई सीट खाली नहीं थी और कोई औरत भी नहीं खड़ी थी| अगले स्थानक पर दो औरतें गोद में बच्चों के साथ चढ़ी और खड़ी रही| वे भी यही धारणा लेकर खड़ी थी कि उनके हिस्से में कोई सीट तभी आएगी जब कोई खाली होगी और छीन-झपट कर लेनी होगी, यानी survival of the fittest. अब चूंकि मेरे माता पिता ने मुझे संस्कार दिए हैं तो हम दोनों दोस्तों को खड़ा हो कर उन्हें सीट देना उचित लगा| दिल्ली में होते तो ऐसी परिस्थिति नहीं आती| वहाँ औरत खुद इतनी सक्षम है कि आप कितने ही बड़े पहलवान क्यों न हों, अपनी सीट आपसे छीन ही लेगी| नांदल ने मुझे बताया कि उसने एक बार एक औरत को अपनी सीट के लिए संघर्ष करते हुए देखा था| उसने जिस आदमी से उठने के लिए कहा, उस आदमी ने कहा "पहले उस आगे वाले को उठाओ, मैं पहले क्यों उठूँ?" औरत जब शिकायत लेकर कंडक्टर के पास गयी तो कंडक्टर ने जवाब दिया "मैं कैसे सीट दिलवाऊं? तुम उस आदमी की शिकायत जाकर पुलिस में कर दो|" अब आप खुद सोच सकते हैं कि वो औरत पुलिस के पास क्यों नहीं गयी| आप उसकी जगह होते तो क्या करते? अपने हक के लिए लड़ी भी और कुछ मिला भी नहीं| इससे पहले जब मुझे इस वाकये का पता नहीं था, मैं और मेरी एक classmate, शिव्या बस में सफर कर के कॉलेज वापस आ रहे थे| भीड़ में हम खड़े ही आये| मैंने उसे कहा कि "स्त्रियांसाठी" वाली सीट से उस आदमी को मेरे कहने के बावजूद उठाया क्यों नहीं? उसका जवाब था "समझदार आदमी अपने आप उठ जाता| इसलिए जो बैठा था वो मूर्ख ही था| और मूर्ख के मुंह लगकर अपना ही नुक्सान होता| वो कुछ बोल देता और हमें फिर ऐसे ही आना पड़ता जैसे अब|"
शिकवा 2: FE के दूसरे सेमेस्टर में मैंने पहली बार "ज़ाकिर नायक" के बारे में सुना था| उसके वीडियो देखे और उनसे प्रभावित भी हुआ| पर थोडा सा उज्र भी था कि वो इस्लाम का प्रचार कर रहे थे और मैं एक हिंदुत्व का अनुयायी हूँ| फिर भी उनके द्वारा कही हुयी अच्छी बातों को ग्रहण करने और बुरी बातों को त्याग देने के लिहाज़ से मैं उनके विचार सुनता रहा| पर एक सवाल पर आकर मुझे वाकई लगा कि हो न हो, ये भी किसी न किसी रूप में साम्प्रदायिकता को हवा दे रहे हैं| उनसे एक लड़की ने आकर पूछा कि "सभी धर्म सिर्फ विश्वास हैं| वे वक्त के साथ बदलते गए और विश्वास जोर पकड़ते गए| हम क्यों इन धर्मों के चक्कर में पड़े हैं? क्यों ना सभी धर्मों से सिर्फ अच्छी बातें निकाल कर एक ऐसा जीवन जियें जिसमें सिर्फ अच्छाई हो?" और ज़ाकिर ने इसका ज़वाब लड़की को गुमराह करने के तरीके से दिया| वो कहते हैं कि "ये कौन निर्धारित करेगा कि कौन सी चीज़ अच्छी है और कौन सी बुरी? कुरआन अल्लाह के लफ्ज़ हैं और उसका हर एक हर्फ़ पाक है, सही है| इसलिए दुसरे धर्मों में जाने की ज़रूरत ही नहीं और इस्लाम अपनाओ|" वहीँ हिन्दू कहते हैं कि सभी अच्छे व्यवहार और आदतें यदि एकत्र की जायें तो नियमों का एक ऐसा संगठन बन जायेगा जिसे हिंदू पुस्तकों में सनातन धर्म का नाम दिया गया है| ये एक ideal condition है जिसे पाने की कोशिश ही की जा सकती है, कभी पूर्णतः पाया नहीं जा सकता| इसी कोशिश में लगे धर्म को कहते हैं - हिंदुत्व| अब सोचने कि बात ये है कि इस्लाम भी वही perfect situation अपनी कुरान में बताता है और हिंदुत्व भी उसी को achieve करने का प्रयास करता है| इसका मतलब इस्लाम और हिंदुत्व एक ही हैं| धर्म और मज़हब में कोई फर्क ही नहीं| फिर क्यों ये तकरार पैदा की जा रही है? कुछ फर्क हैं फिर भी| हिंदू ऋषि-मुनि भगवे रंग को पवित्र बताते हैं| इस्लाम के फ़कीर हरे रंग को वरीयताएँ देते हैं| पर क्या रंगों से फर्क पड़ता है? हुए तो वे विश्वास ही ना| हिन्दू की माँ भी अपने बच्चे को झूठ बोलने और चोरी करने से रोकती है| मुस्लिम औरत भी अपने पति और परिवार के बड़ों को आदर देती है| दोनों धर्म अच्छाई की ओर इंगित करते हैं| फर्क कहाँ पड़ा? मादरीय ज़बान कहो या मातृभाषा, देश कहो या मुल्क, स्वर्ग कहो या जन्नत, मतलब तो वही निकलता है| सिर्फ कुछ रीति-रिवाज़ अलग अलग हैं| और जो बातें दो धर्मों में मेल नहीं खाती, वो असल में इंसानियत के लिए कोई झगडे का मुद्दा होती ही नहीं| सिर्फ हम उन्हें मुद्दा बना लेते हैं| हिन्दू शरीर को जलाते हैं और मुस्लिम जिस्म को दफनाते हैं| कबीर के शरीर को फिर क्यों नहीं कोई एक अपने लिए ले जा सका? क्योंकि वो इंसानियत का समर्थक था| किसी धर्म का नहीं| हिन्दुस्तान के झंडे में भगवा रंग भी है और हरा भी और बीच में है अमन का रंग, सफ़ेद| पर भारत की ही नागरिकता लिए हुए भी "शाह गिलानी" जैसे लोग देश के टुकड़े-टुकड़े कर देना चाहते हैं| अपने गुर्दे, अमाशय आदि के ऑपरेशन करवाता हुआ भारत सरकार के पैसे पर कभी दिल्ली और कभी मुंबई की शरण लेने वाला गिलानी, कश्मीर को भारत से अलग कर देना चाहता है| ये जानते हुए भी कि कश्मीर में अकेले पनपने का दम अभी नहीं है| वहाँ के लोगों के साथ हिन्दुस्तानी फ़ौज के कुछ बद्दिमाग सैनिकों ने बुरा सुलूक किया इसका मतलब ये नहीं कि पूरा हिन्दुस्तान बुरा है| कोई भी धर्म अकेला कभी भी पूरा नहीं होता, चाहे वो हिंदुत्व हो या इस्लाम| वो लोगों द्वारा ही बनता और पनपता है और लोग ही उसे बेवजह तूल देते हैं चाहे उन्हें पूरा किस्सा मालूम हो या ना हो|
शिकवा 3: इन्टरनेट पर पाकिस्तान और भारत के लोगों के बीच मैंने कई बार तू-तू-मैं-मैं होते हुए पढ़ी है| Technical terms में इसे Flaming कहते हैं| शुरुआत देश से होती है और धीरे-धीरे वो धर्म पर उतर आते हैं| फिर गालियों का सिलसिला और दोनों तरफ के लोग अपनी औकात पर आ जाते हैं| जैसे होड़ लगी हो कि किसे ज्यादा गन्दी गालियाँ याद हैं| पाकिस्तान के लोग हिन्दू धर्म को और हिन्दुस्तान के लोग इस्लाम को किसी भी तरह नहीं बक्शते| ऐसे में मुझे दो बातों का सबसे अधिक अफ़सोस होता है| पहला, कि मेरी नज़र में पाकिस्तान के लोग भी वैसे ही है जैसे भारत के लोग| Lord Palmerston ने कहा है " Nations have no permanent friends or allies, they only have permanent interests". मतलब साफ़ है| वक्त के किसी दौर में पाकिस्तान ने हम पर आक्रमण किये इसका मतलब ये नहीं कि हम उन ज़ख्मों को कुरेद कर घाव भरने ना दें| पाकिस्तान के पुराने शासक अमन ना चाहते हों, हम ये उम्मीद रखें कि आने वाली सरकारें अमन और चैन चाहती हैं| कम से कम वहाँ की आवाम तो यकीनन चाहती है| कौन सा मुल्क है जो हर वक्त जंग में जूझना चाहता है? हुक्मरान गलत कदम उठा रहे हैं उसकी वजह से आम जनता को दोषी ठहराना या उनके बारे में बुरा भला सोचना गलत है| इसे बुद्धिजीवियों के लक्षण नहीं कहते| दूसरा दुःख ये उठा कि मुसलमान तो भारत में भी बस्ते हैं| भारत के लोग जब मुस्लिमों को गालियाँ देते हैं तो उस समय ये भी सोचें कि हिन्दुस्तान के अधिकाँश मुस्लिम भी देशभक्त हैं| हम अनजाने में उनके दिल को तो ठेस नहीं पंहुचा रहे? वैसे ही हिन्दू पाकिस्तान में भी हैं बेशक पाकिस्तान एक इस्लाम प्रधान मुल्क हो| उनमें से भी कुछ लोग पाकिस्तान की फ़ौज में भरती होते होंगे और भारत के खिलाफ सिर्फ देशभक्ति की भावना लिए लड़ते होंगे| अतः दोनों तरफ के लोग एक दुसरे पर ऐसे करारे और भद्दे कटाक्ष ना करें तो बेहतर होगा| मानवता की कद्र करो| जितने उल्लास से मैं होली खेलता हूँ, उतनी ही कद्र से मैंने ईद के दिन मस्जिद में नमाज़ भी पढ़ी है| मैंने कुछ दिन पहले chatroulette खोल लिया तो सामने तीन जवान अँगरेज़ लड़के नज़र आये| मुझे देखते ही चिल्लाने लगे "जेहाद जेहाद"| कैसी छवि हो गयी है पूर्व के देशों में भारतीय उप-महाद्वीप देशों के नागरिकों की? और इसमें उनका भी क्या कुसूर? हम दिखाते ही ऐसा हैं| अपना सिक्का खोटा हो तो परखने वाला क्या करे?
शिकवा 4: आज दिवाली है| मैं कल से अपने सब दोस्तों से गुजारिश कर रहा हूँ कि दीवाली पर पटाखे न बजाएं| और जयादातर ने oppose किया| मैं समझता हूँ कि समस्या गंभीर है और दीवाली की एक रात की वजह से भारत में अथाह प्रदूषण फ़ैल जाता है| indianexpress.com के अनुसार हवा में RPM की मात्रा 100 से अधिक नहीं होने चाहिए अन्यथा वो घातक हो सकती है, जबकि 2008 की दिवाली में RPM 174 तक पहुँच गया था| दिल्ली के छात्रों ने कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाये और 2009 की दिवाली की रात RPM 121 रहा| फिर भी ये घातक सीमा से ऊपर था| अब सिर्फ दिल्ली में ये हाल है तो पूरे हिन्दुस्तान में प्रदूषण कितनी जानलेवा मात्रा में निकला होगा? क्योंकि भारत में हिन्दू धर्म के अनुयायी दक्षिण में कन्याकुमारी तक बसते हैं और दीवाली मानते हैं| एक एक को बताकर सब तक मैं अपना आह्वान नहीं पहुँचा सकता था| इसलिए मैंने facebook पर अपने update से पटाखे ना जलाने की दरख्वास्त की| काफी लोगों की धनात्मक (positive) प्रतिक्रिया आयी पर मेरे बहुत से दोस्त उल्टा मेरा कटाक्ष भी करने लगे और कहने लगे कि "इतनी ही पर्यावरण की फ़िक्र है तो गाडियां भी बंद कर दो| गांधी, तू ऐसा कर, घर रेल में नहीं, साइकल पर जाना|" यकीनन बेकार में वाहन चलाना एक गलत बात है, पर जब ज़रूरत हो तो वाहन का इस्तेमाल आज के वक्त में आवश्यकता है| समय की बचत के लिए हम थोडा सा समझौता कर सकते हैं| वैसे भी सरकार आह्वान करती है कि जितना अधिक हो सके, public transport इस्तेमाल करो| और रही बात साइकल पर घर जाने कि तो मैं development रोकने की नहीं, sustainable development को बढ़ाने कि बात कर रहा हूँ| वे भी जानते हैं कि मैं जो कह रहा हूँ, वो सही है पर वे मानना नहीं चाहते| खास कर के इसलिए कि अगर मान लिया तो उनके घमंड को ठेस पहुंचेगी कि "गाँधी की बात मान ली"| वाहन इस्तेमाल करना ज़रूरत है| पटाखे जलाना ज़रूरत नहीं है| वो अनावश्यक मनोरंजन है जो सुबह तक सड़क, घर के बरामदों, सार्वजनिक स्थानों आदि पर टुकड़े-टुकड़े हो चुके पटाखों के रूप में नज़र आएगा| ये वैसा ही मज़ा है जैसा अस्थायी मज़ा एक शराबी को शराब पीने के बाद आता है जिसका उस समय तो नहीं पता चलता, पर आगे चल कर नुक्सान होता है| शराब शरीर को धीरे-धीरे मारती है और प्रदूषण धरती को धीरे-धीरे मार रहा है| कुछ दोस्त बोलते हैं कि साल में एक ही तो दिन आता है| पर वो भूल जाते हैं कि वही तो दिन है जब सबसे ज्यादा नुक्सान होता है| उनका कहना है कि "भविष्य किसने देखा है| आज खुल कर जी लो| मज़े ले लो| पर्यावरण जब तक बुरी तरह से उजड़ेगा, उससे पहले ही हमारी तो उम्र पूरी हो जायेगी|" आगे आने वाली पीढ़ियों के बारे में ना सोचना होता तो क्यों मंगल पांडे जैसे लोग आजादी की लड़ाई के बिगुल बजाते और कैसे आज हम आज़ाद होते? अपना बलिदान देकर ही आने वाली पीढ़ियों को कुछ दे जाना मानवता है| स्वयं का स्वार्थ पूरा करना इंसानियत नहीं|
पशु समान है वह जो आप-आप ही चरे
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे
nice blog dude.....
ReplyDeletebt girlz n boyz r equal in all respect then y to reserve seat for girlz in ny field.....boyz r more seats unke liye reserve honi chahiye....
aur mujhe katai achha ni lagta ki koi ladkiyon ka support kare...
Jst read ur Sikwa 4th ....GR8 work ....ppl also Understands everything ...but जूठी शान के चक्कर में stud बनने की f8 maarte hain . will comment on more sikwa's after reading thm... just now bit bzzy !!
ReplyDelete@Anonymous: आपके विचारों से मैं सहमत हूँ| पर ज़रा इस बात पर गौर कीजिये|
ReplyDeleteBiologically and physically, औरत हमेशा मर्द से कमज़ोर होती है| ये मैं ही नहीं, science भी कहती है| उनमें calcium और iron की कमी होती है due to menses. They also lack some basic muscle building hormones which are abundant in men. ऊपर से breast-feed etc से उनकी सेहत मर्द से और भी ज्यादा कमज़ोर हो जाती है| भारत में पुरुष अधिकाँश घर के बाहर और औरत घर के अंदर काम करती हैं| Although energy consumption दोनों का बराबर होता है पर muscle development और healthy living सिर्फ मर्द को मिल पाती है| आदमी की diet भी औरत से ज्यादा होती है| ऐसे में अगर एक ही उम्र की एक औरत और एक आदमी खड़ा हो तो आप किसे बैठने के लिए जगह देंगे?
I know that the time is of equality today. पर अभी तक हमारा मुल्क लिंग-समानता को पाने के रस्ते में है, पायी नहीं है| और जब तक ये equality आ नहीं जाती, आरक्षण की आवश्यकता है| एक हट्टा-कट्टा नौजवान बैठा रहे और एक बूढी खड़ी रहे ये सही नहीं| अपंगों और वृद्ध के लिए भी आरक्षण है| क्या उन्हें भी हटा दें? नहीं, क्योंकि वो कमज़ोर हैं| औरत भी कमज़ोर है|
अपने यारों के साथ अटखेलियाँ करने वाली और अकारण ही जीवन व्यर्थ करने वाली जवानी कि मस्ती में चूर, जिन्हें देश, समाज का ख्याल नहीं, ऐसी औरतों के लिए आरक्षण न दो| मैं सहमत हूँ| पर ऐसी औरत हिंदुस्तान में होती कितनी हैं? 1 प्रतिशत? 2 प्रतिशत? उनकी दुहाई देकर भारत की आम औरत को इज्ज़त देना बंद नहीं कर सकते हम|
आपके कीमती समय के लिए धन्यवाद|
aap jaise naa jane kitne mard aurto ko izzat dete honge par kabhi aapne socha hai ki aapko unki taraf se kitni izzat milti hai....female are less in no. aur iska ye poora fayda uthati hain...example ke taur par AIT ko dekh lijiye...mai btana nhin chahta par ek ladki aisi bhi hai jo..ek hindu , sikh aur ab ek muslim ladke ka bekauf istemaal kar rhi hai...
ReplyDeletelet me tell u 1 more xample..whenevr we cum across a female in train...we heartly give seat to her widout knowing her...bt have u ever thought ki wen u r in train widout seat..then i dont think that any female has supported u in providing d seat 2 u...commander here
I agree with you, but partially :) :) :)
ReplyDeletei wanted to knw d name of girl in "ek ladki aisi bhi hai jo..ek hindu , sikh aur ab ek muslim ladke ka bekauf istemaal kar rhi hai..." ??? can I ??
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