अलाहाबाद में मेरी SSB आई थी| मुझे पहले ही दिन निकाल दिया वैसे तो :-) पर कोई बात नहीं| Chill मारता हुआ घर की तरफ निकल लिया| अब इतना idea तो था नहीं कि बढ़िया performance के बावजूद निकाल देंगे (मुझे तो मेरी performance गज़ब लगी), फिर भी to be safe side, पहले से ही वापस आने का reservation करवा रखा था| लेकिन train रात को नौ बजे थी| जाऊँ कहाँ? अलाहाबाद पहली बार आया हूँ| कुछ तो देख कर जाऊँ| काफी जगह सोची| एक list में देखा कि क्या-क्या है यहाँ घूमने के लिए|
१) संगम : गंगा और यमुना जहाँ मिलती हों, तो देखना तो बनता है|
२) आनंद भवन: जवाहर लाल नेहरु का घर तो देख ही लें|
३) और भी तीन चार ऐसे ही tourist place के नाम थे|
अब इतना समय तो था नहीं के सब कुछ देख लूँ| पर आखिर में जो देखने का decide किया, उसके बाद कुछ और देखने का मन ही नहीं रहा| मन किया की बस वहाँ पहुँच कर बैठा ही रहूँ - बैठा ही रहूँ| वापस आने का मन ही नहीं था| वो जगह थी Alfred Park|
इसे आज कल कंपनी बाग के नाम से या चंद्रशेखर पार्क के नाम से जानते हैं| ऑटो वालों से कहा की चंद्रशेखर पार्क जाना है तो कोई समझ ही नहीं पाया| बड़ी मुश्किल से कोई एक ऑटो वाला मिला जो बोला की शायद वो जनता है की ये कहाँ पर है| तब जा कर वहाँ पहुँचा| उस पेड़ के नीचे काफी देर तक बैठा जिस के नीचे 'आज़ाद' शहीद हुए थे| दिल आ गया उस जगह पर| फिर बारिश आ गई| जब तक बारिश नहीं थमी, वहीँ बैठा रहा| वो पेड़ क्या देखा, बस अब और कुछ देखने को बाकी नहीं रहा| तृप्ति हो गई| और अँधेरा होते-होते मैं वापस railway station आ गया|
लेकिन दुःख हुआ थोडा सा ये सोच कर कि लोग तो इस जगह को इस कदर भूल गए हैं कि इसी शहर के लोगों को भी याद नहीं की अलाहाबाद में ऐसा कोई पार्क भी है| बाकी सब तो बकवास था| उस संगम में क्या रखा है? धर्म? जहाँ कुम्भ में लोग खो जाते हैं? उस संगम और उन नदियों से कहीं ज्यादा पवित्र था ये पेड़|
(Inspired to write this article after watching the following video by few of my favourite juniors. Kudos boys. Well made. You share my feelings)
१) संगम : गंगा और यमुना जहाँ मिलती हों, तो देखना तो बनता है|
२) आनंद भवन: जवाहर लाल नेहरु का घर तो देख ही लें|
३) और भी तीन चार ऐसे ही tourist place के नाम थे|
अब इतना समय तो था नहीं के सब कुछ देख लूँ| पर आखिर में जो देखने का decide किया, उसके बाद कुछ और देखने का मन ही नहीं रहा| मन किया की बस वहाँ पहुँच कर बैठा ही रहूँ - बैठा ही रहूँ| वापस आने का मन ही नहीं था| वो जगह थी Alfred Park|
इसे आज कल कंपनी बाग के नाम से या चंद्रशेखर पार्क के नाम से जानते हैं| ऑटो वालों से कहा की चंद्रशेखर पार्क जाना है तो कोई समझ ही नहीं पाया| बड़ी मुश्किल से कोई एक ऑटो वाला मिला जो बोला की शायद वो जनता है की ये कहाँ पर है| तब जा कर वहाँ पहुँचा| उस पेड़ के नीचे काफी देर तक बैठा जिस के नीचे 'आज़ाद' शहीद हुए थे| दिल आ गया उस जगह पर| फिर बारिश आ गई| जब तक बारिश नहीं थमी, वहीँ बैठा रहा| वो पेड़ क्या देखा, बस अब और कुछ देखने को बाकी नहीं रहा| तृप्ति हो गई| और अँधेरा होते-होते मैं वापस railway station आ गया|
लेकिन दुःख हुआ थोडा सा ये सोच कर कि लोग तो इस जगह को इस कदर भूल गए हैं कि इसी शहर के लोगों को भी याद नहीं की अलाहाबाद में ऐसा कोई पार्क भी है| बाकी सब तो बकवास था| उस संगम में क्या रखा है? धर्म? जहाँ कुम्भ में लोग खो जाते हैं? उस संगम और उन नदियों से कहीं ज्यादा पवित्र था ये पेड़|
(Inspired to write this article after watching the following video by few of my favourite juniors. Kudos boys. Well made. You share my feelings)
Really inspired,
ReplyDeleteWay u thinks, way u feel moment!!
Ur student..
That's eternally inspiring but unfortunately people neglect them and chasing those fragiles.
ReplyDelete. Whatsoever I am afraid that you may get certified as anti national and may be ordered to leave for Pakistan for your argue regarding Hinduism
yeah its real sir....ppl has forgot all things....
ReplyDeleteyeah its real sir....ppl has forgot all things....
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