Wednesday, May 5, 2010

ऋचा


परसों रात 3 बजे की बात है| मेरे दोनों रूमी सो चुके थे| मैं पढ़ रहा था| उन दोनों की अपेक्षा मेरी हालत कुछ ज्यादा ही खराब है| तो ज़ाहिर सी बात है की मुझे पढना भी ज्यादा ही पड़ेगा| कुछ समझ नहीं आ रहा था तो सोचा की थोड़ी देर बाहर घूम आऊँ| अक्सर रात के इस वक़्त हॉस्टल से बाहर नहीं घूमा जाता क्योंकि इजाज़त नहीं होती| पर मेन गेट खुला था तो मैं निकल गया| चलते चलते फुटबाल के मैदान में चला गया और बेंच पर बैठ कर आसमान की तरफ देखने लगा| तारों को देख कर दिमाग में सीधा ख़याल यही गया कि इन्हीं तारों को देख कर ये कैसे पता लगा सकता हूँ कि इस वक़्त मैं भूमध्य रेखा से 18 डिग्री दूर हूँ?
क्योंकि ये तारे तो एक ही रात में लगभग आधे चक्र की परिक्रमा लगा लेते हैं| कुछ दिन पहले ही तो इसी तरह कि एक पहेली सुलझाई थी मैंने एक किताब में| अतः, इनका स्थान तो समय पर निर्भर करता है| एक ही बिंदु पर स्थगित होते तो आसान होता| फिर ध्रुव तारे का ख़याल आया| फिर वक़्त की पहचान के लिए नक्षत्रों कि याद आई| सोचता रहा| सोचता रहा और प्राचीन खगोल विद्वानों को सराहता रहा| ठंडी ठंडी बयार चल रही थी| पत्ते आवाज़ कर रहे थे और धीरे धीरे मुझे भी ठण्ड लगने लगी| इससे मेरे ख़याल टूटे और मैं धरातल पे आ गया| फिर सोचा कि "नितिन, तू ये क्या कर रहा है? शायद यही तेरी असफलता की वजह है कि तू भटकता है| सब यही कहते हैं| अब तुझे आने वाली परीक्षा के बारे में सोचना चाहिए और तू भूगोल से प्रेम कर रहा है? मूर्ख है क्या? यहाँ अपने घर से इतनी दूर किसलिए आया है? पढने के लिए ही न?"

बस इस बात का सोचना था कि फिर खो गया| "मैं घर से कितना दूर आया हूँ? लगभग आधा भारत? यानी 3000 कि.मी. का आधा| अर्थात लगभग 1500 क.मी.| इसका अर्थ ये हुआ कि मैं लगभग 10 डिग्री अक्षांश दूर हूँ| इसका मतलब दिल्ली 28 डिग्री पर स्थित है|" फिर गलत राह पकड़ गया| जाने मुझे क्या हो जाता है| चाँद को देखा| हॉस्टल के ठीक ऊपर चमक रहा था| आधा, पर दीप्तिमान| साधारणतः उसे देख कर प्रेम, शीतलता आदि का आभास होता है| पर मेरे लिए उस वक़्त वो सिर्फ एक ब्रह्मांडीय पिंड था|

कुछ देर बाद मैं वापस रूम में आ गया| ठण्ड तो लगी ही थी| स्वेट शर्ट पहनी और फिर निकल पड़ा| इस बार हाथ में लैप्पी था और फिर वही बेंच| सोचा था कि वहां थोड़ी देर बैठकर DELD के lectures देखूंगा| पर जाने क्या हुआ कि बस यूँ ही बैठ गया| सोचने लगा कुछ और| और इस बार थोड़े romantic विचार आये| अब विडम्बना देखिये कि थोड़ी ही देर पहले समाँ प्यार का था पर मैं professional | और अब माहौल professional बना कर आया था पर दिमाग में रोमांस चल निकला| लगता है यही प्रवृत्ति मुझे मरवाएगी इक दिन| सोचने लगा कि क्यों मेरे सब दोस्त मुझे बार बार ये कहते हैं कि मैं खूब fight मारता हूँ? जबकि सच ये है कि AIT में आने के बाद एक बार तो गलती हुयी है जिसे मैं दिल से मानता हूँ| पर दोबारा इतिहास दोहराए ऐसा मैं मौका भी नहीं देने वाला किसी को| ऋतंभरा के साथ घटी वो घटना मुझे ज़िन्दगी भर कचोटती रहेगी, ये सच है| पर मेरी उस एक गलती ने मुझे कितना कुछ सिखाया है, ये मैं ही जनता हूँ| हाँ! अमनज्योति के अलवा भी कुछ ऐसे चेहरे हैं जो मुझे लुभाते हैं, दिल को छूते हैं| पर वो सब क्षणिक हैं| प्रेम नहीं है| आकर्षण मात्र भी नहीं है| कुछ और ही है| प्रिया एक ऐसी लड़की है जिसके प्रति मेरा अनजाना सा आकर्षण हुआ था| पर उसकी भी वजह सिर्फ यही थी कि प्रिया का चेहरा, उसके नैन नक्ष, उसकी बातें, उसका मुस्कुराना, सब कुछ जाने कैसे, पर मेरी अमन से काफी हद तक मिलता जुलता है| और जब दो साल तक मैंने अमन को एक नज़र भी नहीं देखा है तो यहाँ वो प्यास बुझती है| ये लगाव भी प्रिया के लिए नहीं, सिर्फ उसके चेहरे के लिए है| शायद उसने भी ये महसूस किया होगा कि मैं उसे देखता रहता हूँ पर कभी कहा नहीं| और पता मुझे भी था कि उसने महसूस कर लिया है| पर करता भी तो क्या? राह चलते एक नज़र भी पड़ जाती तो अटक ही जाती मानो| मन ही मन जानता कि उसने देख लिया है, पर दिल कहता कि बस एक पल और, एक पल और| मैं चलता रहता और गर्दन घूमती रहती जब तक नांदल हाथ पकड़ झटक नहीं देता| फिर जब मुझे लगा कि उसे परेशानी होने लगी है तो एक दिन उस को बुला कर अपनी हालत बता दी| उसे निश्चिन्त कर दिया कि मेरे दिल में उसके लिए ऐसा कुछ नहीं है जिसके लिए वो परेशान हो| आखिर उसे तीन साल मेरी junior कि तरह गुज़ारने हैं| तो वातावरण अनुकूल होना चाहिए| ज़ाहिर है कि किसी भी लड़की को परेशानी हो सकती है| मुझे नहीं लगता कि मैं भी गलत था, पर यक़ीनन अगर कोई गलत था तो वो भी मैं ही था| और अब उसकी तरफ नज़र जाती भी है तो मैं हिचकिचाता नहीं| धड़कन नहीं बढती| आँखें नहीं शरमाती|

मेरा लक्ष्य क्या है ये मुझे तभी पता चला जब कॉलेज में आ चुका था| Medical stream के लिए मेरी तमन्ना, biology के लिए मेरा प्यार मैंने तब जाना जब मैं engineering के चार साल के चक्रव्यूह में फंस चुका था| हफ्ते भर पहले ही घर फ़ोन किया कि मुझे सिर्फ इस साल एक बार MBBS के लिए coaching दिलवा दो| फ्रेशेर्स में बिना कोअचिंग के CBSE pre cleared और mains में close ranking , दोनों ही मेरे लिए दुखदायी थी| अगर pre ही clear न होता तो कम से कम ये मान कर तो बैठ जाता कि मेरा तो हो ही नहीं सकता| और जब mains भी नज़दीक से रह गया तो दिल टूट गया| हर साल छुट्टियों के बाद जब मैं वापस कॉलेज आता हूँ तो बैग में PMT की तयारी की किताबें भर लेता हूँ, पर पापा वापस निकलवा देते हैं| इस बार चोरी से रखनी चाही पर पापा ने पूरे बैग की छान बीन कर के सारी किताबें निकलवा दीं| शुरू शुरू में जो ले आया था बस वही हैं वरना bio की किताबों की शकल देखने को तरस गया हूँ| इस साल के CBSE -PMT के question paper download मार कर solve करने की कोशिश की| दो साल बाद भी bio के 100 सवालों में से 68 उस रात भी ठीक किये, 9 गलत थे और बाकी सब unattempted | यानी negetive मिलाकर भी 300 में से 195| साल दर साल का कट-ऑफ जब देखता हूँ तो साफ़ है कि इस साल भी मेरी pre cleared थी| बिना तय्यारी, बिना माहौल और बिना वक़्त| पर दो अनुभव एकदम नए भी थे| एक, कि किसी ज़माने में मैं जहाँ पूरी bio 30 -40 मिनट के अंदर ही अंदर ख़त्म कर देता था, वहीँ उस रात मैंने 2 घंटे ले लिए थे| थोडा दिमाग पर जोर पड़ा था| पर में भी कहाँ गलती थी| दो साल हो गए थे| याददाश्त पर धूल तो जमी ही थी| दूसरा अनुभव एक अलौकिक सुख का था जो मैंने फिर से biological world में घुस कर पाया| मेरी bio के लिए दीवानगी पर गर्व भी होता है, और दुःख भी| पर सबसे बड़ा अफ़सोस तो ये है कि "मेरी मंजिल तो MBBS ही थी" जानने में इतना वक़्त लग गया| अब सोचता हूँ कि जब ACDS में AIR 72 थी, तभी अगर उसमें ले लेता तो आज cadavers के बीच में तो होता| हर तरफ cadaver ही cadaver| फ़ोन पर मैं रो पड़ा| दीदी ने समझाया कि अभी अपने परिवार के हालात ऐसे नहीं कि मेरी coaching का खर्चा उठा सकें| दीदी की MBBS का खर्चा, मेरा AIT में खर्चा और घर में पापा का खर्चा साल में पांच लाख से ऊपर जाता है| जबकि आमदनी सालाना 3 लाख से भी कम| यानी हर साल 2 लाख का क़र्ज़| और ऐसे में मेरा coaching का खर्च पापा वहन नहीं कर सकते| मुझे वादा किया कि एक बार मैं इंजीनियरिंग पूरी कर लूं तो उसके बाद मैं जो चाहूं, कर लूं|
यहाँ मैं दोस्तों कि गर्दन पकड़ पकड़ के बोलता हूँ कि "इस तरफ से जाने वाली ये नली carotid artery है, ये hyoid bone है जिसके दो हिस्से हैं, upper cornu and lower cornu ", शरीर के बाकी हिस्से छेड़ छेड़ कर बताता हूँ कि यहाँ foramen magnum होता है, यहाँ foramen ovale होता है, ये carpals 8 और tarsals 7 क्यों होती हैं, lumbar , sacral , coccygeal , और न जाने क्या क्या? खाना खाता हूँ तो कटे हुए खीरे को देख कर placentation याद आती हैं| राह चलते नीम के पेड़ देख कर दोस्तों को बताता हूँ कि इसे azadirachta indica कहते हैं| जीव विज्ञान मेरे खून में बस गया है| इसे चाहकर भी मैं भुला नहीं सकता|
कुछ दिन पहले मैंने Leonardo da Vinci पर बनी एक documentry डाउनलोड की| उसे देख कर मज़ा आ गया| मैं 6th class से Leonardo का दीवाना हूँ| उस वक़्त मैंने एक किताब में बस ये पढ़ा था कि वो एक महान philosopher था| और उसके interest के fields पढ़ कर मैं आश्चर्यचकित था| Paintings , sketching , anatomy , engineering , aerodynamics और न जाने क्या-क्या| और फिर मेरी हुयी नांदल से बहस| मैं जिद लगाये बैठा था कि Leonardo इस पृथ्वी पर पैदा होने वाला सबसे महान genius था| और नांदल Newton और Einstein को कह रहा था| मैंने निश्चय किया कि इन्टरनेट पर चेक करूँगा और मानक होगा IQ level | ये मैंने खुद के लिए किया| नांदल से बहस ख़त्म हो चुकी थी| और कुछ reliable websites पर check किया तो results मिले: Newton 196 , Leonardo 192 , Einstein 167 | आमतौर पर 100 के IQ को normal , 110 को above avarage और 120 को super intelligent माना जाता है| उनकी अ
पेक्षा तो ये तीनो ही महान लोग थे| फिर मैंने खुद का भी IQ online ही चेक किया| निष्कर्ष था 129| मन ही मन कुछ अभिमान हुआ पर जब देखता हूँ उन महान लोगों को जहाँ 196 तक था, तो स्वयं को नगण्य मानता हूँ| वैसे भी ये तो प्रकृति का नियम है कि आने वाली पुश्तें अपने पूर्वजों से अधिक सक्षम होती हैं| तो मुझे आशा के अनुरूप और अधिक IQ वाला होना चाहिए था (यदि law of regression को ध्यान में न रखें तो, जो मुझे वाकई गलत लगता है)|

पर अब तो आ गए इस लाइन में| क्या किया जाये? ऋचा सोरोत बन कर भी बहुत खेल लिया| अब इन चार सालों में उसे एक professional attitude दूंगा| अब मेरे लिए ऋचा सिर्फ एक खेल, एक prank नहीं रही| ऋचा को उस शिखर पर पंहुचाऊँगा कि दुनिया याद रखेगी| लोग pen name से भी तो लिखते हैं| मेरा यही नाम सही| इसी के सहारे एक अच्छा इंजिनियर भी बन जाऊंगा| अब इन चार साल कि जेल में यही मेरी साथी है जो मुझे पढने के लिए मजबूर करेगी| जिस दिन मैं रुक गया, उसी दिन इसकी साँसे थम गयी| पर ऋचा को जीना होगा| वो जियेगी| और उसके लिए मैं अपना खून तक जलाऊंगा|
"ऐ दिल तुझे कसम है, हिम्मत न हारना|
दिन ज़िन्दगी के जैसे भी गुजरें, गुज़ारना||"

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